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मेरेलिन मनरो का अंतिम पत्र / रणजीत

सुनो,
ओ दुनिया के सबसे सम्पन्न और सबसे सभ्य देश के भद्र नागरिको,
सुनो !

मैं जो अब तक सिर्फ़ तुम्हारे एयर-कंडीशंड टॉकीजों के पर्दो
या फ़िल्मी अख़बारों के रंगीन पृष्ठों पर से ही बोलती रही हूँ
मैं जो अब तक ओढ़े हुए व्यक्तित्व ही तुम्हारे सामने रखती रही हूँ
निर्माताओं-निर्देशकों-संवाद-लेखकों के शब्द ही
तुम्हारे सामने दुहराती रही हूँ
आज तुम्हें अपने ही दिल और दिमाग़ से निकले हुए
अपने ही शब्दों से संबोधित कर रही हूँ ।

सुनो, ओ अमेरिका के कला-मर्मज्ञ फिल्म-निर्माताओं, निर्देशकों
आलोचकों और दर्शको !
तुमने मुझे हमेशा नींद की गोलियाँ दी हैं !
मेरी चेतना, मेरे विवेक, मेरे अहसास को सुलाया है
मेरे नारीत्व, मेरे व्यक्तित्व, मेरी आत्मा का होश छीना है
और मेरी भूख, मेरी प्यास, मेरे स्तनों और मेरे नितम्बों को उभारा है
मेरे होठों के रंग और मेरे बैंक-बैलेंस को शोखी दी है--
मेरे शरीर को जगाया है ।

इस शरीर को जिसने अब मुझे पूरी तरह से लील लिया है
यह शरीर जो अब मेरे व्यक्तित्व का एक अंग नहीं,
उसका दुश्मन बन गया है ।
और आज मैं इसे उन्हीं नींद की गोलियों से सुला दूँगी
जिनसे तुमने मेरी आत्मा को सुलाया था ।

ओ मेरे अपने देश और दूसरे देशों के मेरे प्रशंसको !
मेरे सौन्दर्य के ग्राहको! मेरे अभिनय के सराहको!
मेरी तारीफ़ में छपी हुई तुम्हारे अख़बारों की सतरें
तुम्हारे कलेण्डरों में टँगी हुई मेरे नंगे शरीर की तस्वीरें
मेरे नाम पर भरी हुई तुम्हारी आहें
मेरे उभारों पर भिनभिनाती हुई तुम्हारी आँखें

मेरे होठों की ओर फेंके हुए तुम्हारे चुम्बन-
ये सब मेरे आसपास इस तरह मंडरा रहे हैं
जैसे किसी गंदे अधसूखे नाले के कीचड़ में पड़ी
किसी इंसान की लाश के आसपास
घिनौनी मक्खियाँ, जौंकें और केंकड़े मंडरा रहे हों
और यह सब मेरे लिए असह्य है !

ओ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ढिंढोरा पीटने वाले मेरे देश के रहबरो !
मैं राजनीति नहीं जानती
समाज और व्यक्ति के उलझे हुए सम्बन्धों को नहीं समझती
पर एक सीधी-सी बात पूछती हूँ
कि उन सब के लिए
तुम्हारी इस व्यक्तिगत स्वतंत्रता का क्या मतलब है
जिन्हें तुमने व्यक्ति बनने का मौक़ा ही नहीं दिया ।

तुमने मुझे मात्र एक शरीर बनाकर रक्खा
एक शरीर: जो ख़ूबसूरत है, जवान है, भोग्य है,
एक शरीर: जो किसी की माँ नहीं, बहिन नहीं, बेटी नहीं,
किसी की पत्नी, प्रेयसी, मित्र कुछ भी नहीं है
महज़ एक शरीर -
सैंतीस-तेईस-सैंतीस का एक मॉडल !

मेरी टेबिल पर कपड़े के दो खिलौने पड़े हैं
एक बाघ है और एक मेमना
कल ही मैं इन्हें ख़रीदकर लाई हूँ
कितना भयानक, कितना ख़ूँख़ार है यह बाघ
और कितना मासूम, कितना निरीह है यह मेमना !

पता नहीं क्यों यह विचार मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है
कि यह मेमना मैं ही हूँ
और यह बाघ ?
-इस मासूम मेमने को निगलने वाला यह बाघ ?

मैं सही शब्द चुनना नहीं जानती
शायद यह तुम्हारा फिल्म-उद्योग है
शायद तुम्हारे बाज़ार और बैंक हैं-
शायद.....शायद तुम्हारे समाज का यह ढाँचा है !

रात उदास है
और खिड़कियों पर जमती हुई बर्फ़ की फुहार में
किसी रहस्यमयपूर्ण षड्यन्त्र की फुसफुसाहट है
अब मेरे पास सिर्फ़ एक गोली बची है
आख़िरी और छत्तीसवीं गोली ।

और इसके बाद मैं गहरी नींद सो जाऊँगी
ऐसी नींद जिससे मुझे कोई न जगा सकेगा !
मैं तुम सब की आभारी हूँ, ओ मेरे देशवासियो !
मैंने इस छोटे से जीवन में बहुत कुछ पाया है
पैसा, प्यार, शोहरत, इज्ज़त सब कुछ
दस लाख डालर का बैंक-बेलेन्स,
बेवर हिल्स पर एक शानदार कोठी,
दसियों कारें और लाखों लोगों के आकर्षण का केन्द्र
यह शरीर !

मैंने अपने इस छोटे से जीवन में बहुत कुछ पा लिया है
सिर्फ़ एक छोटी-सी इच्छा शेष है
कि कोई बिल्कुल अजनबी व्यक्ति
बिना मेरी शोहरत और सुन्दरता से प्रभावित हुए
बिना जाने कि मैं हालीवुड की रानी मुनरो हूँ
मुझे एक आइसक्रीम खिला देता
या सहज स्नेह से सिर्फ़
मेरे गाल थपथपा देता

...बस
अब मैं सो रही हूँ ।