Last modified on 1 फ़रवरी 2010, at 21:54

मेरे गाँव में आज भी / रंजना जायसवाल

पूजा जैन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:54, 1 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे गाँव में
आज भी
डूबते सूरज की रोशनी में
रंगीन होते वृक्षों को देखकर
लौट आती हैं गायें
अपने बथानों की तरफ...

बारिश में
तितलियों की तरह
खुलकर नहाते हैं बच्चे...

पहली बार
ससुराल से लौटी
नाईन की मदमाती
बेटी सी हवा
बाँटती है
छम-छम करती
घर-घर में
सुगन्ध का बायना...

बालाओं की आँखों में
कुलाचें भरते हैं हिरण
बूढी़ सधवाओं की
बडी़... सुर्ख टिकुली से
शरमा जाता है चाँद...

नववधूओं के चेहरे की
दीप्ति से
फीकी पड़ जाती है बिजली
बाबा की लाठी की फटकार से
मुँह-अँधेरे ही भाग खडा़ होता है
आलस...

और नाराज़ होकर निकली दादी
चूजों को दाना खिलाती
मुर्गी को देखकर
लौट आती है घर
खोइछे में
मूढी़ और बताशे लेकर...।