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मेरे गाँव में रात हो चुकी होगी / दिनेश देवघरिया

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शाम ढल चुकी होगी
चाँदनी छा रही होगी
नदी की ओर से
ठण्डी हवाएँ आ रही होंगी।
सरलू पी थोड़ी ताड़ी
फगुआ गा रहा होगा,
रेडियो पर
गीत विविध-भारती का आ रहा होगा।
शहर से पिताजी
रात वापस आ गए होंगे,
घर में
खुशी के रंग सभी छा गए होंगे।
मुन्‍नी के लिए खिलौने,
माँ की साड़ी आई होगी,
दादा का चश्मा,
दादी की दवाई आई होगी।
पेट्रोमैक्स की रौशनी में
मंदिर जगमगा रहा होगा,
कीर्तन-मण्डली
सज चुकी होगी,
भजन गाया जा रहा होगा।
गोरी कोई मन में
गौने का सपना सजा रही होगी।
नई दुल्हन कोई
घूँघट में ही सकुचा रही होगी।
दादी- नानी की कहानी में
बच्‍चे खो गए होंगे।
माँ की थपकी-लोरी से
कुछ सो रहे होंगे।
गाँव सो चुका होगा,
जुगनू जागते होंगे।
चाँद निहारता होगा,
तारे ताकते होंगे।