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मेरे गीतों का दोष यही / दिनेश गौतम

मेरे नयनों का दोष यही कि इनमें तुम्हें बसाया है। .....
जब-जब मैंने तृप्ति तलाशी,
मुझको केवल प्यास मिली
सुख को ढूँढ़-ढूँढ़ हारा पर
सुख की केवल लाश मिली।
मेरी खोजों का दोष यही कि कभी न कुछ मिल पाया है।.....

अनचाही पीड़ा से मेरे,
युग-युग के अनुबंध हुए,
कई जन्म की प्यासी रातों
से मेरे सम्बंध हुए,
मेरे रिश्तों का दोष यही कि सब कुछ मिला पराया है।.....

जीवन के हर इक पड़ाव पर
मुझको नई थकान मिली।
जले हुए से होंठ मिले
औ बेबस सी मुस्कान मिली।
मेरी खुशियों का दोष यही कि उन पर दुख का साया है।.....

मैं पतझर को रहा समेटे
सब फागुन के मीत बने,
मेरी इकलौती करुणा से
बस पीड़ा के गीत बने।
मेरे गीतों का दोष यही कि इनमें दर्द समाया है।.....