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मेरे गीत का विषय लघु है, तब भी सबसे महान् / वाल्ट ह्विटमैन / दिनेश्वर प्रसाद

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मेरे गीत का विषय लघु, तब भी सबसे महान् है जैसा, अपना
अहम्  एक साधारण, पृथक् व्यक्ति
मैं नई दुनिया के उपयोग के लिए उसका गीत गाता हूँ । 
मैं मनुष्य की समग्र आकृति, नख से शिख तक का गीत गाता हूँ ।
कलादेवी के योग्य न केवल आकृति है, न केवल मस्तिष्क ।
मैं कहता हूँ, कहीं अधिक उपयुक्त है समग्र स्वरूप ।
मैं पुरुष के साथ समान रूप से नारी का गीत गाता हूँ ।
मैं निजी व्यक्तित्व के विषय तक ही आकर नहीं
रुकता । मैं ‘आधुनिक’ शब्द, ‘सामूहिक रूप से’ शब्द बोलता हूंँ ।
मैं अपने समय का गीत गाता हूँ और विभिन्न देशों का — 
मुझे बीच-बीच में अभागे युद्ध के विषय में भी जानकारी हो जाती थी ।
(मित्र ! तुम जो कोई भी हो, अन्त  में यहाँ
तक आने के बाद प्रारम्भ करने के लिए, मैं हर पृष्ठ पर तुम्हारे हाथ का
दबाव अनुभव करता हूँ, जिसका मैं प्रतिदान कर रहा हूँ
और इस तरह अपनी यात्रा में सड़क चलते हुए
और वह भी एक से अधिक बार, और
परस्पर सम्बद्ध  होकर हमलोग चलते रहें ।)

(लीव्ज़ ऑव ग्रास के 1867 संस्करण से)

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
                                              Walt Whitman
                                SMALL THE THEME OF MY CHANT.

Small the theme of my Chant, yet the greatest—namely, One's-
Self—a simple, separate person. That, for the use of the
New World, I sing.
Man's physiology complete, from top to toe, I sing. Not physi-
ognomy alone, nor brain alone, is worthy for the Muse;—I
say the Form complete is worthier far. The Female equally
with the Male, I sing.
Nor cease at the theme of One's-Self. I speak the word of the
modern, the word En-Masse.
My Days I sing, and the Lands—with interstice I knew of hap-
less War.
(O friend, whoe'er you are, at last arriving hither to commence,
I feel through every leaf the pressure of your hand, which I
return.
And thus upon our journey, footing the road, and more than
once, and link'd together let us go.)

From 'Leaves of Grass' 1867.