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मेरे चाँद का उपवास है / सुनीत बाजपेयी

रात गहरी हो गयी सूना पड़ा आकाश है।
आ गगन के चाँद मेरे चाँद का उपवास है।

आ गये देखो गगन में अनगिनत झिलमिल सितारे।
आँख अपलक शाम से ही बस तेरा रस्ता निहारे।
प्रेम के संसार का पावन समर्पण है बुलाता,
नेह की शुभ साधना का दीप तुझको ही पुकारे।
तू न समझे आज का दिन किसको कितना ख़ास है।
आ गगन के चाँद मेरे चाँद का उपवास है।

आज श्रद्धा में समायीं हैं ह्रदय की कल्पनायें।
तृप्ति का अहसास पाने को विकल हैं कामनायें।
तुम नही आओगे तब तक कैसे मुखरित हो सकेंगी,
मौन बैठीं हैं छतों पर आज मन की भावनायें।
स्वप्न सिन्दूरी तुझी से,आस्था - विश्वाश है।
आ गगन के चाँद मेरे चाँद का उपवास है।

जो भी करना है तुझे ओ चाँद नभ के बाद में कर।
वृत किसी का टूटना है आज तुझको अर्घ्य देकर।
एक तू जो एक पल को भी न किंचित सोंचता है,
सब खड़े हैं आरती का थाल अपने हाँथ लेकर।
फिर किसी की प्रीति का जग कर रहा उपहास है।
आ गगन के चाँद मेरे चाँद का उपवास है।