भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे चिर मित्र!! / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 31 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परंतप मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=अंत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन के मधुमास का अनमोल क्षण
प्रिय! मैं तुमसे मिलने आया हूँ
रिक्त हस्त,
प्रेमाभिव्यक्ति को पुष्प भी न ला सका
अन्य कुछ समर्थ न थे जो
मेरे हृदय के स्पंदन एवम् मन की
संवेदनाओं को तुम्हारे अन्तस् तक सहेज पाते

सुंदर पुष्पों की चाह में,
अभिमंत्रित वाटिका में पहुँचा
नयनाभिराम मंत्रमुग्ध हो अपलक
देखता रहा -
मदमस्त यौवन से उल्लासित
फूलों और सुकोमल कलियों को
गलबहियाँ डाले एक-दूसरे में लिप्त, पुष्प-गुच्छ
सुवासित वायु में मादक मकरंद की उत्तेजना
भ्रमर दल का मनमोहक साम-गान
नव सृजन की बेला का स्वागत करती प्रकृति
समस्त वातावरण, रति-समर्पित आदर्श मौन
देखकर मन रोमांचित हो उठा

एक चंचल कली को उसकी डाली से
अलग करने का लोभ संवरण न कर सका
कली ने अल्हड़ता से मुस्कुराते हुए कहा -
"प्यारे पथिक ! क्या मेरे जीवन का उत्सर्ग
तुम्हारे प्रेम की प्राण प्रतिष्ठा को चिर स्थायित्व दे सकेगा?
तुम मनुष्यों के अतिरिक्त समस्त सृष्टि में
कोई अन्य, अपने प्रेम अभिव्यक्ति के लिए
किसी का आलम्बन नहीं लेता...
अच्छा होगा अपने प्रेम की तीव्रता एवं तपस्या को
समर्थता दो, वो तुम्हारी प्रेमिका तक पहुचे स्वयं"

निःशब्द सा, मैं अनुत्तरित पर, सजग हो चला था-
धन्य हो तुम, ऋणी हूँ तुम्हारा, हे कली !
प्रेम में किसी भी तरह की हिंसा का कोई स्थान नहीं
अपने शब्दों को बना समर्थ,
दूँगा सुमधुर सन्देश अपने प्रिय को...

कुछ पल ठहर कर देखता रहा
विस्मृत,मोहित और अचल होकर
नन्ही कलियों का आकर्षक नर्तन
नव यौवन को सम्भालते सुरभित पुष्प
रंगीली तितलियों के चुम्बन से
शरमा कर अपनी ही डाली पर झूलते
सुकुमार मनमोहक बहुरंगी पुष्प दल
प्रतिपल जीवन के सर्वोच्च सन्देश को
समस्त वातावरण को दे रहे थे
मैं पूर्णतः उनके प्रेम में डूब चुका था

पुष्प वाटिका के आकर्षक पुष्पों को
तुम्हे भेंट करने की अभिलाषा
अब न रही
मैंने उनके जीवन के परम आनंद को
कुछ पलों में आत्मसात कर लिया था
किसी पुष्प को उसकी डाली से च्युत करना
प्रकृति के शृंगार एवं नियमों की अवहेलना
अब मैं नहीं कर सकूँगा

स्वयं के प्रेम प्रदर्शन के लिए
पुष्प की आहुति, उनके प्रेम का अंत
नवयौवना का असमय वियोग
मेरे प्रेम का प्रारम्भ कभी नही हो सकेगा
यह एक हिंसा होगी
जो मेरे समस्त जीवन का कलंक बनेगी

अतः मेरे आत्मिक मित्र!
जीवन के मधुर मकरन्द से सम्पूरित
सुगन्धित,अपनी डाली पर मदमाते
सुंदर, सजीव आकर्षक एवं स्निग्ध
वे सभी मादक कलियाँ और पुष्प
यथास्थान, मेरे शब्दों में
अर्पित करता हूँ तुम्हें
स्वीकार करो
मेरे चिर मित्र !