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मेरे जाने के बाद / निमिषा सिंघल

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बिखेर दिया है ख़ुद को
इस क़दर मैंने
कि
मैं ना मिल पाऊँ ग़र तुम्हे

तो ढूँढ लेना मुझे
मेरे गीतों और रचनाओं में।
तुम पर प्रेम छलकाती
कभी नाराज़गी दिखाती
किसी ना किसी रूप में मिल ही जाऊंगी।

कभी उदासी घेर ले
तो शायद मैं गुदगुदा दू रचनाओं में छुप कर हंसा दू तुम्हे!
बेशक तुम गढ़ लेना कुछ किस्से मनचाहे
पर पढ़ लेना मेरा प्रेम जिससे तुम ख़ुद को सरोबोर पाओगे।

भीग जाना चाहो गर
अचानक हुई प्रेम वर्षा से
तो ढूँढ लेना मुझे फिर
मेरी रचनाओं में।

कभी अधूरी-सी कोई कहानी-सी मै कभी पूर्ण पाओगे,
रचनाएँ पढ़ कर जब गले लगाओगे।

मै हमेशा काव्य सुगंध बन महकती रहूंगी
तुम्हारे आसपास
अपनी रचनाओं में
रजनीगंधा के पुष्प की तरह
तुम जब भी मेरी महक से मदहोश होना चाहो...
तो फिर ढूँढ लेना मुझे!

मै तुम्हे फिर वहीं मिलूंगी
अपने गीतों और रचनाओं मै
गाती गुनगुनाती
तुम पर प्यार लुटाती।