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मेरे टूटे ख़्वाबों की अधूरी दास्ताँ हो तुम / कबीर शुक्ला

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मेरे टूटे ख़्वाबों की अधूरी दास्ताँ हो तुम।
तुम ही इब्तिशाम हो सोज़े-पिनहाँ हो तुम।
 
तुम दिल दरिया के बालीं पर शफ़क-सी हो,
दर्द की जम्हाती नींद शाम-ए-हिज़्राँ हो तुम।
 
तुम मेरा ख़्वाब मुन्तशिर, बेसुध तमन्ना हो,
अधूरे सफ़रे-इश्क़ का मीरे-क़ारवाँ हो तुम।
 
तुम मेरी बेरब्त ख़्बाहिशे-निगारे-हयात-हो,
जो मुकम्मल ना हो सका वह मुकाँ हो तुम।
 
तुम मेरा अनकहा एहसास अनकही चाहत,
मैं पा न सका वह ख़लूशे-ख़ाकदाँ हो तुम।