भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे तो पीर उठे ननदी हँसत फिरे / मगही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatSohar}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मेरे तो पीर उठे ननदी हँसत फिरे॥1॥
बाहर बैठे ससुर हमारे, ससुर, तोरे पइयाँ पडूँ।
ननदी बिदा करो, झलाही<ref>झगड़ालू</ref> बिदा करो॥2॥
बाहरे बैठे भैंसुर<ref>पति का बड़ा भाई</ref> हमारे, भैंसुर तोरे पइयाँ पडूँ।
ननदी बिदा करो, झलाही बिदा करो॥3॥
बाहर बैठे सइयाँ हमारे, सइयाँ तोरे पइयाँ पडूँ।
ननदी बिदा करो, झलाही बिदा करो॥4॥
कंगन सोनार घरे, चुनरी रँगरेज घरे।
गंगा जमुना बाढ़ आई, कैसे बिदा करूँ॥5॥
मेरे से कंगन ले लो, मेरे से चुंदरी ले लो।
नइया चढ़ा ननदी बिदा करो॥6॥

शब्दार्थ
<references/>