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मेरे नदीम मेरे ग़मगुसार रहने दे / कांतिमोहन 'सोज़'

मेरे नदीम मेरे ग़मगुसार रहने दे ।
तमाम ज़ीस्त मुझे बेक़रार रहने दे ।।

झुका है मुझपे कोई आबशार रहने दे,
कुछ और देर मुझे अश्कबार रहने दे ।

मैं इस क़फ़स को समझ लूँगा आशियाँ अपना,
मुझे चमन में शरीक-ए--बहार रहने दे ।

तू मेरे दर्द का दामन झटक तो सकता है,
शरीर दिल पे जहां का फ़िशार रहने दे ।

मेरे जिगर में गुलों की क़तार चस्पाँ है,
मेरी निगाह में गर्दो-ग़ुबार रहने दे ।

ये रात भर की ख़ुशी कम ख़ुशी की बात नहीं,
सुरूर है अभी ज़िक्र-ए-खुमार रहने दे ।