तुम्हारे हुस्न के चर्चे बहोत हैं
हमारे हिज्र<ref>जुदाई, अकेलापन</ref> के किस्से बहोत हैं
अमां जाओ, तुम्हें दौलत मुबारक़!
हमारे ख़्वाब भी महँगे बहोत हैं
जहाँ पर चाहें हम बुनियाद रख दें
हम अपने रोब के पक्के बहोत हैं
तुम्हारे हाथ में मंज़िल अगर है
मेरे भी पांव में रस्ते बहोत हैं