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मेरे मन! तू दीपक-सा जल / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

जल-जल कर उज्ज्वल कर प्रतिपल
प्रिय का उत्सव-गेह
जीवन तेरे लिये खड़ा है
लेकर नीरव स्नेह
प्रथम-किरण तू ही अनंत की
तू ही अंतिम रश्मि सुकोमल
मेरे मन! तू दीपक-सा जल

‘लौ’ के कंपन से बनता
क्षण में पृथ्वी-आकाश
काल-चिता पर खिल उठता जब
तेरा ऊर्म्मिल हास
सृजन-पुलक की मधुर रागिणी
तू ही गीत, तान, लय अविकल
मेरे मन! तू दीपक-सा जल