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मेरे मन का भार / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

मेरे मन का भार प्यार से
कैसे तोल सकोगे?
आज मौन का पट प्यारे!
तुम कैसे खोल सकोगे?

हिय-हारक मृदुहीर-हार पर
लुटते लाख-हजार!
किस कीमत पर इन टुकड़ों को
तुम ले मोल सकोगे?

टुक रो देना अरे निर्दयी!
टुक रो देना उर को थाम!
हाय! यही होगा छोटे-से
इस सौदे का सच्चा दाम!