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मेरे माज़ी, धुंआ हो कर, तुम खो गए हो कहीं / नीना कुमार

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मेरे माज़ी, धुंआ हो कर, तुम खो गए हो कहीं
ये अलग बात है, शायद, के तुम गए ही नहीं
कभी खुशबू, कभी सरगोशियाँ, बन बन के
तेरी गुज़री हुई साँसें, हैं, मुझे मिलने आतीं
हवा में, कब से हैं घुले, गुज़रे पलों के नगमें
लौट आतें हैं वो, सागर की लहरों की तरह,
और साहिल सा मैं बैठा हूँ शब्-ओ-रोज़ यहाँ
के एक रोज़ यूँ ही, सागर ही ना मैं बन जाऊँ