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मेरे मौला कभी तो तू मुझे यूँ आज़माने आ / सुरेखा कादियान ‘सृजना’

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मेरे मौला कभी तो तू मुझे यूँ आज़माने आ
ये रातें ख़्वाब से गुजरें, तभी मुझको जगाने आ

तुझे पाऊँ तुझे गाऊँ नहीं हूँ इसके काबिल मैं
मग़र बिसरा न तू मुझको भले नफ़रत निभाने आ

कभी दुःख में कभी सुख में सदा से ही जली हूँ मैं
मग़र अब तो मेंरे मौला ये सुख दुःख भी जलाने आ

हँसी हूँ आज फिर से मैं हँसी ने फिर रुलाया है
अग़र है दर्द में राहत मुझे अब तू सताने आ

कटी है उम्र ये सारी तुझे अपना बनाने में
सफ़र का अंत होना है अभी तो हक़ जताने आ