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मेरे लिए तू ख़ुद को यूँ ख़ुद से जुदा न कर / मोहम्मद इरशाद

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मेरे लिए तू ख़ुद को यूँ ख़ुद से ज़ुदा न कर
अच्छा तो यही है कि तू मुझसे मिला न कर

अपनों के दिये जख़्म हैं दौलत मेरे लिए
रहने दे इनको ताज़ा कोई दवा न कर

मुश्किल से ये बुझ पायें हैं शोले मेरे दिल के
जल जायेगा तू देखले इनको हवा न कर

जितना भी हो सके तू कर लोगों की भलाई
अपनी तरफ से तू किसी का भी बुरा न कर

हर वक्त रहना चाहता हूँ तेरे सामने अदना
अपने ख़्याल में तू मुझको बड़ा न कर

‘इरशाद’ लड़ना है तुझे ख़ुद अपने ऐब से
अपनों से बात-बात पे हरगिज़ लड़ा न कर