‘मेरे साथ बिहार करैं प्रिय, मुझको सुखी करें भगवान’-
गोपी मन में कभी न होती, ऐसी चाह जान अनजान॥
‘राधा सँग श्याम की क्रीड़ा चलती रहे सदा अविरोध’-
निज क्रीड़ा से कोटि गुणा होता है गोपी को सुख-बोध॥
‘मेरे साथ बिहार करैं प्रिय, मुझको सुखी करें भगवान’-
गोपी मन में कभी न होती, ऐसी चाह जान अनजान॥
‘राधा सँग श्याम की क्रीड़ा चलती रहे सदा अविरोध’-
निज क्रीड़ा से कोटि गुणा होता है गोपी को सुख-बोध॥