भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे सूरज / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 18 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }} [[Catego...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे सूरज
बादल तो आएँगे
घुमड़कर
अम्बर में छाएँगे
रोकें उजाला
तुम्हें सहना होगा
लहर बन
चट्टानों से टकरा
बहना होगा
पीछे नहीं मुड़ना
दूर है जाना
अँधेरे भँवर से
न घबराना
सागर तक जाना
आँसू पोंछके
डुबकी है लगाना
मोती बटोर लाना ।
-0-