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मेरे हिस्से की सुबह / पूनम तुषामड़

अपने हक के लिए लड़ते हुए मैंने जाना
कितना जरूरी है ये याद रखना
कि मेरी लड़ाई
नहीं है सिर्फ उनसे
जो पोषक नहीं हैं गुलाम संस्कृति के
बल्कि...
उनसे भी होगी
मुठभेड़
जिन्हें मैंने माना अपना
वे रहे सदा बेगाने
जिनकी आंख में रड़कती रही मैं
किसी कंकर-सी
और हृदय में असहाय शूल-सी
मेरी असमर्थताओं को
समर्थताओं में बदलने की जिद
अक्सर रास नहीं आती है उन्हें
फिर भी...
मैं हर रोज जागती आंखों से
देखती हूं एक ही
स्वप्न...!