भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे ही सम्मान में था / इवान बूनिन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: इवान बूनिन  » संग्रह: चमकदार आसमानी आभा
»  मेरे ही सम्मान में था

मेरे ही सम्मान में था
उस उत्सव का आयोजन
हरचम्पा की मालाओं से
लदा हुआ था मेरा तन
पर मस्तक मेरा ठंडा था
किसी साँप की तरह
हालाँकि भीड़ और उमस से
भरा था वह भवन

अब नई माला का इन्तज़ार है
और याद है यह कथन
हरचम्पा के फूलों से ही
लदा होगा तब भी यह तन
ताबूत-महल में नींद होगी
और अनंत अँधेरे की दस्तक
नई मालाएँ सदा के लिए
ठंडा कर देंगी यह मस्तक

(1950)

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय