Last modified on 5 अक्टूबर 2015, at 18:50

मेला / योगेंद्रकुमार लल्ला

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 5 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेंद्रकुमार लल्ला |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आओ मामा, आओ मामा!
मेला हमें दिखाओ मामा!
सबसे पहले उधर चलेंगे
जिधर घूमते उड़न खटोले,
आप जरा कहिएगा उससे
मुझे झुलाए हौले-हौले!
अगर गिर गया, फट जाएगा,
मेरा नया-निकोर पजामा!

कठपुतली का खेल देखकर
दो धड़की औरत देखेंगे,
सरकस में जब तोप चलेगी
कानों में उँगली रखेंगे!
देखेंगे जादू के करतब,
तिब्बत से आए हैं लामा!

फिर खाएँगे चाट-पकौड़ी
पानी के चटपटे बताशे,
बच जाएँगे फिर भी कितने
दूर-दूर से आए तमाशे!
जल्दी अगर न वापस लौटे,
मम्मी कर देंगी हंगामा!

-साभार: नंदन, जून 1992, 30