मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मेहँदी तोड़न चली हैं अरूसा<ref>दुलहन</ref> बेटी, दुलहे ने पकड़ी है बाँह।
दुलहा लगावें बाईं कानी अँगुलिया, मेरी लाड़ो लगावें
दोनों हाथ, मेहँदी मेरी रे॥1॥
दुलहा सुखावेें घड़ी रे पहरिया, मोरी लाड़ो सुखावें सारी रात।
लगावे उमराव<ref>सरदार, रईस</ref> मेहँदी मेरी रे, लगावे सरदार मेहँदी रे॥2॥
शब्दार्थ
<references/>