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|संग्रह=फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
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मैंने उसको
::जब-जब देखा, ::लोहा देखा, ::लोहा जैसा-- ::तपते देखा, ::गलते देखा, ::ढलते देखा, 
मैंने उसको
::गोली जैसा ::चलते देखा !</poem>
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