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मैंने जो क्षण जी लिया है / हिमांशु पाण्डेय

मैंने जो क्षण जी लिया है
उसे पी लिया है ,
वही क्षण बार-बार पुकारते हैं मुझे
और एक असह्य प्रवृत्ति
जुड़ाव की
महसूस करता हूँ उर-अन्तर

क्षण जीता हूँ, उसे पीता हूँ
तो स्पष्टतः ही उर्ध्व गति है,
क्षण में रहकर
क्षण से पार जाने की जुगत -
पार जाने की चरितार्थता ।

पर ढलान पर जैसे पानी
दौड़ता है नीचे की ओर
मैं भी कहाँ ठहर पाता हूँ कहीं ?
वर्तमान का सुख-दुःख, माया-मोह.....
सबको देखता हूँ लुढ़कते हुए किसी ओर ......

आगत प्रेम मेरी प्रतीक्षा में है ।