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मैंने डाली पर बैठा एक कौवा उठाया / शक्ति बारैठ

Kavita Kosh से
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मेने उठाया एक डाली पर बैठा कौवा
और रख़ दिया कविता की पहली पंक्ति के
चौथे शब्द पर,
एक उड़ता बाज़ पकड़ा
एक घोंसला बनाती चिड़िया पकड़ी
और रख़ दिया दोनों को एक साथ एक ही जगह,
मज़दूर को उठाया सड़क खोदते हुए
कवि को पकड़ा बस में चढ़ते हुए
विचारक को सुट्टा मारते हुए,
वहीं पास ही कैफ़े की बेंच पर पेंटर भी मिल गया
पास ही के पार्क में मुंह को गमछे सी छिपाकर
सोया हुआ ऑटो ड्राइवर भी,
अब मेने एक मोगरी ली और
प्याऊ की बूढी अम्मा के दरारों भरे हाथों से
इन सब पर हथेली भर पानी छिडकवा दिया,
कूट कूट कर चटनी बनाई और
चाँद सितारों का छोंका मार दिया,
और हो गई शानदार जबरदस्त बिकाऊ रेसिपी तैयार,
मगर यह क्या,
पता नहीं क्यों सब ने मिलकर मुझपे मानवाधिकार हनन का मुकदमा दायर कर दिया।
वो सब कह रहे है जज साहब से कि
मेने उनका बिलबिलाता मजदूर उठा लिया
उदास चिड़िया उठा ली, ऑटो ड्राइवर उठा लिया,
आशिक लोग निजी स्वतंत्रता हनन की बात कह रहे है
की उनको उनका चाँद वहीँ का वहीं चाहिए,
सारे लोगों को सब कुछ ठीक ठीक वैसा ही चाहिए
मगर किसी को भी ना कवि चाहिए
ना सामाजिक मूल्यों पर खरी उतरती कविता चाहिए,
उनको पेंटर भी वहीँ का वहीँ चाहिए
में अब इस कसैले काढ़े का क्या करूँ
जज साहब ने कहाँ है इसको पीकर तुम अपनी कौम के साथ सामूहिक आत्महत्या कर लो,
यह सिस्टम और न्यायपालिका की
गरिमा का सवाल है,
और सुनो
वो बस वाला कंटेंट पर सफेद पट्टी चलाओ
और जहाँ कवी शब्द इस्तेमाल हुआ है
वहाँ बीप की आवाज डाल दो।