Last modified on 14 मार्च 2011, at 08:28

मैंने समझा / चंद्र रेखा ढडवाल

तुमने हँसी की होगी
दिन भर की की उकताहट
उड़ा देने को ही
उधेड़कर धागे
झटके से तोड़ दिए होंगें
और मैंने समझा
तार-तार मेरी चादर ने
तुम्हें उकसाया है