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मैं अपने आसपास ही बिखर रहा था / विकास शर्मा 'राज़'

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मैं अपने आसपास ही बिखर रहा था
ये सानिहा मुझे उदास कर रहा था

क़दीम आसमान हँस रहा था मुझ पर
नई ज़मीन पर मैं पाँव धर रहा था

मैं अलविदाअ कह चुका हूँ क़ाफ़िले को
मिरे वुजूद में ग़ुबार भर रहा था

हरी-भरी-सी मुझमें हो रही थी हलचल
मैं ख़ुश्क पत्तियों को जम्अ कर रहा था

तमाम मरहले मिरे लिए नए थे
मैं पहली बार हिज्र से गुज़र रहा था