Last modified on 11 अक्टूबर 2008, at 18:57

मैं अपने हौसले को यकीनन बचाऊँगा / ज्ञान प्रकाश विवेक

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:57, 11 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= ज्ञान प्रकाश विवेक }} Category:ग़ज़ल <poem> मैं अपने ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)




मैं अपने हौसले को यक़ीनन बचाऊँगा
घर से निकल पड़ा हूँ तो फिर दूर जाऊँगा

तूफ़ान आज तुझसे है , मेरा मुकाबला
तू तो बुझाएगा दीये, पर मैं जलाऊँगा

ये चुटकुला उधार लिए जा रहा हूँ मैं
घर में हैं भूखी बेटियाँ उनको हँसाऊँगा

गुल्लक में एक दर्द का सिक्का है दोस्तो,
बाज़ार जा रहा कि उसको भुनाऊँगा

अब सोचता हूँ दावतें दे कर मैँ अब्र को
कागज़ के घर में उसको कहाँ पर बिठाऊँगा.