भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं अपनो मन-भावन लीनौं / रसिक बिहारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं अपनो मन-भावन लीनौं, इन लोगन को कहा न कीनौं।
मन दै मोल लयौ री सजनी, रतन अमोलक नन्ददुलारे॥
नवल लाल रंग भीनो।
कहा भयो सब के मुख मोरे, मैं पायो पीव प्रबीनौं।
 'रसिकबिहारी' प्यारो प्रतीम, सिर बिधनां लिख दौनौ॥