मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद
तेरा वजूद की सैराब कर गया मुझ को
हर आदमी में थे चार आदमी पिन्हाँ
किसी को ढूँढने निकला कोई मिला मुझ को
है मेरे दर्द को दर-कार गोश्त की ख़ुश्बू
बहुत नहीं तेरी यादों का सिलसिला मुझ को
तेरे बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं
दिखा कभी मेरे ख़्वाबों का आईना मुझ को