Last modified on 5 नवम्बर 2013, at 23:37

मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद / फ़ुज़ैल जाफ़री

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 5 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ुज़ैल जाफ़री }} {{KKCatGhazal}} <poem> मैं उजड...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद
तेरा वजूद की सैराब कर गया मुझ को

हर आदमी में थे चार आदमी पिन्हाँ
किसी को ढूँढने निकला कोई मिला मुझ को

है मेरे दर्द को दर-कार गोश्त की ख़ुश्बू
बहुत नहीं तेरी यादों का सिलसिला मुझ को

तेरे बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं
दिखा कभी मेरे ख़्वाबों का आईना मुझ को