Last modified on 13 अप्रैल 2011, at 17:41

मैं उनके एतबार के काबिल नहीं रहा / मोहम्मद इरशाद


मैं उनके एतबार के काबिल नहीं रहा
गोया के अच्छे लोगों में शामिल नहीं रहा

सुन के मैं तड़प उठता हूँ फूलों की दास्ताँ
कहते हैं लोग मुझको मैं संगदिल नहीं रहा

हकबात मुझमें कहने की हिम्मत तो आ गई
अपनी नज़र में आज मैं बुज़दिल नहीं रहा

उनका मेरे करीब से निकला जो काफिला
गोया के अब मैं उनकी मंज़िल नहीं रहा

‘इरशाद’ से मिलेगी अब दरिया की मौज क्यूँ
उसको पता है तूफाँ है साहिल नहीं रहा