Last modified on 1 जून 2018, at 20:14

मैं एकांकी दुखान्तिका हूं / राम लखारा ‘विपुल‘

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:14, 1 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम लखारा ‘विपुल‘ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कथा, कथानक, पात्र सभी है लेकिन इतना अंतर है।
मैं एकांकी दुखान्तिका हूं तुम सुखमयी कहानी हो।

जीवन की वीणा की तारे
आपस में उलझाई है।
एक तुम्हारे दम पर हमने
उलझ उलझ सुलझाई है।
लेकिन इतना भाग्य नहीं था
इक दूजे के हो पाते,
हो जाता गर इतना तो फिर
हम भी सुख से सो पाते।

मैं जाड़े का पाला हूं तुम पुरवा पवन सुहानी हो।
मैं एकांकी दुखान्तिका हूं तुम सुखमयी कहानी हो।

लहरों से लड़कर साहिल तक
आ भी जाते मीत मगर।
हाथ तुम्हारे बढ भी जाते
प्रिये हमारी ओर अगर।
तुम साहिल पर खड़ी रही पर
हमको पार उतरना था,
इतनी सी थी बात कि तुमको
जीना हमको मरना था।

मैं भोली इक चालाकी हूं तुम सोची नादानी हो।
मैं एकांकी दुखान्तिका हूं तुम सुखमयी कहानी हो।