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मैं करती हूँ तुमसे प्रेम / स्वाति मेलकानी

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कई दिनों तक
लगातार चलती बारिश
मुझे नहीं उबाती।
घने कोहरे की
परतों के भीतर झांकने को
मैं अधीर नहीं हो उठती।
मैं प्रतीक्षा करती हूँ
कोहरे के छँटने की
धूप के खिलने की
मैं करती हूँ तुमसे प्रेम।

पतझड़ में
झड़ते पत्तों के संग
चटकते मन को
मैं समेट लेती हूँ।
तेज धूप में
पैरों के जलने पर
बेचैन नहीं होती
और न आह भरती हूँ
घने पेड़ की छांव देखकर
मैं करती हूँ तुमसे प्रेम।

किसी चमकते साफ दिन में
अचानक गिरतेे ओलों पर
मुझे आश्चर्य नहीं होता।
मैं नहीं डांटती
शोर मचाते बच्चों को
और
पड़ोसियों के झगड़ने पर
चुप रहती हूँ
मैं करती हूँ तुमसे प्रेम।

वर्षो से चलते ग्रीष्म के
समाप्त होने की
मैं शर्त नहीं रखती
और
न उदास होती हूँ
टूटते बाँध देखकर
मैं करती हूँ तुमसे प्रेम।
और प्रेम की
वे सारी कसौटियाँ
जिन पर तुम खरे न उतरो
मुझे अस्वीकार हैं।