मैं कैसे कहूँ किस से क्या लगता है
हर शख्स ही महरूमे-हया लगता है
तारीखे-बशर जैसे मुआविन ही न हो
हर तजरिबा-ए-ज़ीस्त नया लगता है।
मैं कैसे कहूँ किस से क्या लगता है
हर शख्स ही महरूमे-हया लगता है
तारीखे-बशर जैसे मुआविन ही न हो
हर तजरिबा-ए-ज़ीस्त नया लगता है।