भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं कैसे होरी खेलूँ राम श्याम करे बरजोरी / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:48, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं कैसे होरी खेलूँ राम श्याम करे बरजोरी।
अबीर गुलाल गाल में लावत धरी बहियाँ झकझोरी।
बार-बार अंगियाबंद तोरी सारी रंग में बोरी।
ग्वाल बाल संग गारी गावत अबिर लिए भर झोरी।
अवचक में मारी पिचकारी केसर के रंग घोरी।
लोक लाज एको नाहीं मानत मोसों करत ठिठोरी।
राह बाट में रार मचावे अबहीं उमिर की थोरी।
द्विज महेन्द्र कोई बरजत नाहीं देख रही सब गोरी।
कबहीं कसर सधैहों मोहन तब बृषभान किशोरी।