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मैं गाँव से जा रहा हूँ / निलय उपाध्याय

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मैं गाँव से जा रहा हूँ

कुछ चीज़ें लेकर जा रहा हूँ
कुछ चीज़ें छोड़कर जा रहा हूँ

मैं गाँव से जा रहा हूँ

किसी सूतक का वस्त्र पहने
पाँच पोर की लग्गी काँख में दबाए

मैं गाँव से जा रहा हूँ

अपना युद्ध हार चुका हूँ मैं
विजेता से पनाह माँगने जा रहा हूँ

मैं गाँव से जा रहा हूँ

खेत चुप हैं
हवा ख़ामोश, धरती से आसमान तक
तना है मौन, मौन के भीतर हाँक लगा रहे हैं
मेरे पुरखे... मेरे पित्तर, उन्हें मिल गई है
मेरी पराजय, मेरे जाने की ख़बर

मुझे याद रखना
मैं गाँव से जा रहा हूँ ।