http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%9C%E0%A4%97_%E0%A4%95%E0%A5%8B_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%97_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%96%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%81_%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87%3F_/_%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9_%27%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%27&feed=atom&action=historyमैं जग को दिल के दाग दिखा दूँ कैसे? / बलबीर सिंह 'रंग' - अवतरण इतिहास2024-03-28T21:47:44Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%9C%E0%A4%97_%E0%A4%95%E0%A5%8B_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%97_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%96%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%81_%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87%3F_/_%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9_%27%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%27&diff=230764&oldid=prevLalit Kumar: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2017-06-23T08:39:38Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग'<br />
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}}<br />
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<poem><br />
मैं जग को दिल के दाग दिखा दूँ कैसे?<br />
मैं अपनी बीती आप बता दूँ कैसे?<br />
<br />
मैं भुला चुका अपनी बीती बातों को,<br />
निर्दयी नियति के निष्ठुर आघातों को;<br />
मैं भुला चुका जग की शतरंजी चालें,<br />
अनगिन ‘जीतों’ और गिनी ‘मातों’ को।<br />
<br />
पर उन सबके गुण-दोष भुला दूँ कैसे?<br />
मैं अपनी बीती आप बता दूँ कैसे?<br />
<br />
जग में जितने मेरे ‘अपने’ कहलाते,<br />
निस्वार्थ प्रेम के राग सदा जो गाते;<br />
पर स्वार्थ सिद्धि का लक्ष्य साथ में लेकर,<br />
मुझको अपनाकर अपने काम बनाते।<br />
<br />
ऐसे अपनों को मैं अपना लूँ केसे?<br />
मैं अपनी बीती आप बता दूँ कैसे?<br />
<br />
उर में असंख्य अरमान लिए बैठा हूँ,<br />
अपनेपन का अवसान लिए बैठा हूँ;<br />
मत छेड़ो मुझको देखो मचल उठेंगे,<br />
पंजर में पीड़ित प्राण लिए बैठा हूँ।<br />
<br />
इन प्राणों को मैं त्राण दिला दूँ कैसे?<br />
मैं अपनी बीती आप बता दूँ कैसे?<br />
<br />
मानव होकर जब मैं जग में आया था,<br />
अंतर घट मधु प्यार भरे लाया था;<br />
भावी जीवन की आशा के भूतल पर<br />
अरमानों के संसार बसा लाया था।<br />
<br />
उन संसारों में आग लगा दूँ कैसे?<br />
मैं अपनी बीती आप सुना दूँ कैसे?<br />
<br />
मैं जीवन-मधु, दुनिया मुझ मधु की प्याली,<br />
मैं नभ प्रभात, जग मुझ प्रभात की लाली;<br />
मुझमें दुनिया में केवल अंतर इतना,<br />
दुनिया की तन की उजली,पर मन की काली।<br />
काली कमली पर ‘रंग’ चढ़ा दूँ कैसे?<br />
मैं अपनी बीती आप सुना दूँ कैसे?<br />
</poem></div>Lalit Kumar