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मैं जनता हूँ, मैं प्रजा / दिगम्बर / कार्ल सैण्डबर्ग

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मैं जनता हूँ, मैं प्रजा, मैं भीड़, मैं जनसमूह

क्या आप जानते हैं कि
दुनिया की हर महान रचना
रची गई है मेरे द्वारा?

मैं मज़दूर हूँ, मैं ईजाद करने वाला,
मैं पूरी दुनिया के लिए भोजन और वस्त्र बनाने वाला।
मैं वो दर्शक, जो इतिहास का गवाह है।

नेपोलियन हमारे बीच से आया, और लिंकन भी।
वे मर गए। तब मैंने और-और नेपोलियन और लिंकन पैदा किए।

मैं एक क्यारी हूँ। मैं एक बुग्याल हूँ,
घास का एक विस्तीर्ण मैदान
जो बार-बार जोते जाने के लिए तैयार है।
गुज़रता है मेरे ऊपर से भयंकर तूफ़ान।
और मैं भूल जाता हूँ।

निचोड़ ली गई हमारे भीतर की बेहतरीन चीज़ें
और उन्हें बरबाद कर दिया गया। और मैं भूल गया।

मौत के अलावा हर चीज़ आती है हमारे क़रीब
और मुझे काम करने और जो कुछ हमारे पास है
उसे त्यागने को मजबूर करती है। और मैं भूल जाता हूँ।

कभी-कभी गरजता हूँ, मैं अपने आप को झिंझोड़ता हूँ
और छींटता हूँ कुछ लाल रंग की बून्दें
कि इतिहास उन्हें याद रखे।
और फिर भूल जाता हूँ।

अगर मैं, जन-साधारण, याद रखना सीख जाऊँ,
जब मैं, प्रजा, अपने बीते हुए कल से सबक लूँ
और यह न भूलूँ कि पिछले साल किसने मुझे लूटा
किसने मुझे बेवकूफ बनाया

तब दुनिया में कोई भाषणबाज़ नहीं होगा
जो अपनी जुबान पर ला पाए यह शब्द — ‘जनता’
अपनी आवाज़ में हमारे उपहास की छाप लिए
या मज़ाक की कुटिल मुस्कान लिए।

तब उठ खड़े होंगे जन साधारण, भीड़, जनसमूह।
तब दुनिया में कोई भाषणबाज़ नहीं होगा
जो अपनी जुबान पर ला पाए यह शब्द — ‘जनता’
अपनी आवाज़ में हमारे उपहास की छाप लिए
या मज़ाक की कुटिल मुस्कान लिए।

तब उठ खड़े होंगे जन साधारण, भीड़, जनसमूह।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिगम्बर