मैं जब भी धूप चाहता हूँ
सूरज थोड़ा खिसक जाता है
तुम कहते हो
मैं झूठ बोलता हूँ
सूरज नहीं
पृथ्वी खिसकती है
पृथ्वी खिसके
या सूरज
धूप
मुझे ही तो नहीं मिलती
मैं जब भी चाहता हूँ ।
मैं जब भी धूप चाहता हूँ
सूरज थोड़ा खिसक जाता है
तुम कहते हो
मैं झूठ बोलता हूँ
सूरज नहीं
पृथ्वी खिसकती है
पृथ्वी खिसके
या सूरज
धूप
मुझे ही तो नहीं मिलती
मैं जब भी चाहता हूँ ।