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मैं जो एक दिन / नंद भारद्वाज

मैं जो एक दिन
तुम्हारी अधखिली मुस्कान पर रीझा,
अपनों की जीवारी और जान की खातिर
तुम्हारी आँखों में वह उमड़ता आवेग -
मैं रीझा तुम्हारी उजली उड़ान पर
जो बरसों पीछा करती रही -
अपनों के बिखरते संसार का,

तुम्हारी वत्सल छवियों में
छलकता वह नेह का दरिया
बच्चों की बदलती दुनिया में
तुम्हारे होने का विस्मय
मैं रीझा तुम्हारी भीतरी चमक
         और ऊर्जा के उनवान पर
जैसे कोई चाँद पर मोहित होता है -
कोई चाहता है -
नदी की लहरों को
    बाँध लेना बाहों में !