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मैं जो रोया / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

मैं जो रोया, तो खूब रोया औ’ रोना है अभी!
खुद तो भीगा हूँ, तुझे भी भिगोना है अभी!

मुझ प’ खोने के लिये कुछ न रहा है फिर भी,
तेरी खातिर मुझे, कुछ है, कि जो खोना है अभी!

मैं न भर नींद कभी सोया, कोई बात नहीं,
सो-के जागूँ न, ऐसी नींद भी सोना है अभी!

तेरी मंजिल का किसी राह से रिश्ता ही नहीं,
मेरे रहबर! तुझे गुमराह भी होना है अभी!

उम्र को छोड़ वक्त की नज़र से देख मुझे,
तेरा ‘सिन्दूर’ सलोना था, सलोना है अभी!