Changes

आत्मा की आड़ भर से लिखना
कि देह मिट्टी भर है
और अंततः ढह जाना देह कि गंध मे में अलौकिक सुगंध कि की संपुष्टि करते हुयेहुए
हालांकि
बिना अतिशयोक्ति-अलंकार के
मिट्टी कि की भाषा मे में क्लिष्ठ
लिख सकता हूँ
उतेजक उत्तेजक शब्दों से परे
मेरे पोर-पोर पर अंकित
सिहरन कि की हर लिखावट तुम्हारी
होठों पर होंठ धरते हुये हुए
तुमने धर न दी होंगी
ढेरों प्राथनाएँ मुझमे मुझमें
जिनसे गुहार सकता हूँ
हर संताप परिवर्तित प्रेम मे में??
केश जब गुदगुदाते होंगे
पार सिहरन से संतृप्त मन
न जगाता होगा भिक्षु
शांत, सौम्य सुधि तर्षित प्रेम मे में??
आलिंगन बद्ध भुजायों मे भुजाओं में कसते हुये हुए कंपकंपाहट
गुंथ गए होंगे नाभि से नभ तक
जैसे गुंथ जाते हैं फूल एकाकार माला मे में पश्चात हर हलचल के समर्पित प्रेम मे में??
मैं ज्ञान से अनगढ़
गढ़ना चाहता हूँ
मिट्टी से केवल
... मिट्टी भर सौंधापन
मैं परित्यक्त हूँ
मेरा आत्म जीवंत है
रोम-रोम, पोर-पोर अभिव्यक्त
वास्तविक व्याख्याओं से.
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits