भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं ढाबे का छोटू हूँ / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं ढाबे का छोटू हूँ।
मैं ढाबे का छोटू हूँ।

रोज सुबह उठ जाता हूँ।
ड्यूटी पर लग जाता हूँ।
सबका हुकम बजाता हूँ।
मैं ढाबे का छोटू हूँ।

दिनभर खटकर मरता हूँ।
मेहनत पूरी करता हूँ।
पर मालिक से डरता हूँ।
मैं ढाबे का छोटू हूँ।

देर रात में सोता हूँ।
कप और प्याली धोता हूँ।
रोते-रोते हँसता हूँ।
हँसते-हँसते रोता हूँ।
मैं ढाबे का छोटू हूँ।