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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 4 / नवीन सागर

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आधी रात
दस्तक दरवाज़े पर
मैं नींद के बाहर

दरवाज़ा खोलकर
सामने
किसी की जगह कोई नहीं
आकार

जहाँ नहीं वहाँ घूरता
क्या नहीं है उस
खाली जगह में जिसकी
पीठ इस तरह
उस तरफ़ अन्धकार।