भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तेरा शाहजहाँ तू मेरी मुमताज महल / अजमल सुल्तानपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं तेरा शाहजहाँ तू मेरी मुमताज महल
आ तुझे प्यार की अनमोल निशानी दे दूँ

हाय ये नाज़ ये अंदाज़ ये ग़मजां ये गुरूर
इसने पामाल किए कितने शहंशाहों के ताज
नीमबाज़ आँखों में ये कैफ़ ये मस्ती ये शूरुर
पेश करते हैं जिसे अहले नज़र दिल का खिराज
ये तबस्सुम ये तकल्लुम ये सलीका ये शऊर
शोख़ संजीदा है या दार हँसी सादामिजाज़
आ तेरे वास्ते तामील करूँ ताजमहल

आ तुझे प्यार की अनमोल निशानी दे दूँ
मैं तेरा शाहजहाँ तू मेरी मुमताज महल

मोगरा, मोतियारा बेल-चमेली चम्पा
सौसनों, यासमनो, नश्तरनो, सर्वसमन
रातरानी, गुले मचकन, गुले नशरीं, सहरा
फूल लब, फूल दहन, फूल जतन, फूल बदन
मेरी सूरजमुखी, गुल चाँदनी, जूही, बेला
हरसिंगारो गुल, कचनार औ गुलनार चमन
मेरी नरगिस, मेरी गुल शब मेरी फूल कमल

आ तुझे प्यार की अनमोल निशानी दे दूँ
मैं तेरा शाहजहाँ तू मेरी मुमताज महल

शमा, खुर्शीद, कमर बर्क, शरर, सैयारे
है तेरे ही रुख़-ए-अनवार की इन सबमें चमक
लाल याकूत शफ़क फूल है ना अंगारे
है तेरे ही लब-ओ-रुख़सार की है इन सबमें झलक
वही उड़ते हुए छींटे हैं ये जुगनू सारे
तेरे सागर से अज़ल ही में गए थे वो छलक
बादा-ए-हुस्न मेरे जाम-ए-शफ़क रंग में ढल

आ तुझे प्यार की अनमोल निशानी दे दूँ
मैं तेरा शाहजहाँ तू मेरी मुमताज महल