भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तो गई वारी-वारी / अनुपम कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं तो गई वारी-वारी
सुन सैयां मैं तुम्हारी

दिन तो जाये बीत हो हो हो
रात भई बड़ी भारी

नैना हैं तीर तेरे हो हो हो
मेरे नैना भी कटारी

दे दी मैंने प्रेम-परीक्षा हो हो हो
अब तो है तेरी बारी

लिख दूंगी प्रेम दिल पे हो हो हो
नैन-कोर से कारी कारी

तेरे संग दुनिया लागे हो हो हो
बड़ी प्यारी बड़ी न्यारी

चैन-वैन अब तो लुटा हो हो हो
मैं तो फिरूँ मारी मारी

कोशिश की भूल जाऊ हो हो हो
पर मैं गई हारी-हारी

फंसी मैं ऐसे बुरी हो हो हो
निकलूं मैं कैसे बेचारी

जानती हूँ तुम्हारी ही हो हो हो
सब ये है कारगुजारी

रपट लिखाऊं थाने में क्या हो हो हो
फ़रमान होंगे जारी-वारी

पा के प्रेम तुमसे हो हो हो
मैं तो हुई वारी न्यारी

मैं तो गई वारी-वारी
तुम भी जाओ वारी-वारी