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मैं थिगली में लिपटी थेर हूँ / ज्योति रीता

तुम लौट आए थे
अनायास ही कई-कई मोगरे एक साथ खिल गये थे
मनी प्लांट के पत्ते हरे हो रहे थे
चाय पहले से ज़्यादा काली थी
घर पहले से ज़्यादा सुगंधित

कुछ दिन बैठकर यादें गींजेंगे
तुम्हारे गिलाफ़ से बाहर आना कब मुमकिन था
कब मुमकिन था प्रेम कालिख से बच पाना

तुम्हारे गिर्दाब (भंवर) में फँसना और-और फँसना था
तुम कोई गूढ़ रहस्य हो या हो तरसौहाँ (तरसाने वाला)
तुम काबिस में लिपटा काम्य फल हो
या कायिकी में निपुण कोई देव

मैं थिगली में लिपटी थेर हूँ (बौद्ध भिक्षु)
तुम्हारे तलहटी में मेरी आत्मा धँसी है॥


काबिस-लाल रंग की मिट्टी।
कायिकी-शरीर विद्या।