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मैं दुआएँ किससे माँगू सुनने वाला यहाँ कोई तो हो / शमशाद इलाही अंसारी

मैं दुआएँ किससे मांगू सुनने वाला यहाँ कोई तो हो,
भाग-भाग कर थक गया हूँ धूप में साया ऐसा कोई तो हो।

रुई सा पिनता गया ग़ुज़रता हुआ हर लम्हा मेरी,
सितमगर तेरी दुनिया में जो मरहम लगा दे ऐसा कोई तो हो।

कहीं कहत, कभी तशद्दुद, कहीं ज़लज़ला मौत का सामाँ बना,
मुसलसल इस कहर से जो मुझे बचा ले दोस्त ऐसा कोई तो हो।

जब भी पिसा वक़्त की चाकी में, कयूँ वो मुफ़लिस ही था,
खु़रदरे हाथों की फ़रियाद जो सुने हुक्मराँ ऐसा कोई तो हो।

हुक्में दौराँ कहते हैं कि नहीं उन सा पारसाँ अब दूसरा कोई,
इन घरों के नाले जो उन तक पहुँचा दे ज़रिया ऐसा कोई तो हो।

वो अब सुनेगा, अब सुनेगा, कब से पड़ा हूँ सजदे में,
रसूलों के हुजूम में जो सुन ले मेरी यलगार ऐसा कोई तो हो।

इस शहर के मरमरी उजाले, इस शहर की शादाब रवानियाँ
जिसमें न हो बू तेरे लहू की एक महल ऐसा कोई तो हो।

"शम्स" अपने दिल के छाले किस-किस को तू गिनवायेगा,
इस रंजीदा रात में जो भर दे उजाला ऐसा कोई तो हो।


रचनाकाल: 08.09.2009