भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार / शिवमंगल सिंह सुमन का नाम बदलकर मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार / शिवमंगल )
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन
 
|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
 
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
 
 
::पथ ही मुड़ गया था।
 
::पथ ही मुड़ गया था।
 
  
 
गति मिली मैं चल पड़ा
 
गति मिली मैं चल पड़ा
 
 
::पथ पर कहीं रुकना मना था,
 
::पथ पर कहीं रुकना मना था,
 
 
राह अनदेखी, अजाना देश
 
राह अनदेखी, अजाना देश
 
 
::संगी अनसुना था।
 
::संगी अनसुना था।
 
 
चांद सूरज की तरह चलता
 
चांद सूरज की तरह चलता
 
 
::न जाना रात दिन है,
 
::न जाना रात दिन है,
 
 
किस तरह हम तुम गए मिल
 
किस तरह हम तुम गए मिल
 
 
::आज भी कहना कठिन है,
 
::आज भी कहना कठिन है,
 
 
तन न आया मांगने अभिसार
 
तन न आया मांगने अभिसार
 
 
::मन ही जुड़ गया था।
 
::मन ही जुड़ गया था।
 
  
 
देख मेरे पंख चल, गतिमय
 
देख मेरे पंख चल, गतिमय
 
 
::लता भी लहलहाई
 
::लता भी लहलहाई
 
 
पत्र आँचल में छिपाए मुख
 
पत्र आँचल में छिपाए मुख
 
 
::कली भी मुस्कुराई।
 
::कली भी मुस्कुराई।
 
 
एक क्षण को थम गए डैने
 
एक क्षण को थम गए डैने
 
 
::समझ विश्राम का पल
 
::समझ विश्राम का पल
 
 
पर प्रबल संघर्ष बनकर
 
पर प्रबल संघर्ष बनकर
 
 
::आ गई आंधी सदलबल।
 
::आ गई आंधी सदलबल।
 
 
डाल झूमी, पर न टूटी
 
डाल झूमी, पर न टूटी
 
 
::किंतु पंछी उड़ गया था।
 
::किंतु पंछी उड़ गया था।
 +
</poem>

09:29, 5 अगस्त 2013 का अवतरण

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।

गति मिली मैं चल पड़ा
पथ पर कहीं रुकना मना था,
राह अनदेखी, अजाना देश
संगी अनसुना था।
चांद सूरज की तरह चलता
न जाना रात दिन है,
किस तरह हम तुम गए मिल
आज भी कहना कठिन है,
तन न आया मांगने अभिसार
मन ही जुड़ गया था।

देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख
कली भी मुस्कुराई।
एक क्षण को थम गए डैने
समझ विश्राम का पल
पर प्रबल संघर्ष बनकर
आ गई आंधी सदलबल।
डाल झूमी, पर न टूटी
किंतु पंछी उड़ गया था।